Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Wednesday, 18 October 2017

फिर से खुल के मुस्कुराना चाहते हैं



फिर से खुल के मुस्कुराना चाहते हैं
आशिक़ी का फिर ज़माना चाहते हैं
हम तेरी गलियो मे आना चाहते हैं
तुमसे मिलने का बहाना चाहते हैं
गर इजाज़त हो तो दिल की दास्ताँ
कुछ सुनेंगे कुछ सुनाना चाहते हैं
तेरा गुस्सा भी सनम लगता है प्यारा
तुम ज़रा रूठो मानना चाहते हैं
आज कहता हू सारे महफ़िल सनम
हम तुम्हे अपना बनाना चाहते हैं
कह रहा घुटने क बल साहिर यही
बस तेरे दिल मे ठिकाना चाहते हैं
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