Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Saturday, 30 December 2017

तुम से छिपा नही है जो बस्ती का हाल है

तुम से छिपा नही है जो बस्ती का हाल है
कुछ घर जले हुए हैं मुझे ये मलाल है
होली दीवाली हो या नया साल दोस्तों
क्या इस खुशी के वक़्त मे उनका ख़याल है
जिन के लिए फटे से कपड़े हैं कुछ लिबास
जिन के लिए दो वक़्त की रोटी मुहाल है
तेरे लिए ये हिंदुओ मुस्लिम की बात है
मेरे लिए ये इंसानियत का सवाल है 
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