Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Tuesday, 6 June 2017

कुछ इस तरह से दिखता है चश्मा जनाब पर


कुछ इस तरह से दिखता है चश्मा जनाब पर
जैसे  गिरी  हो ओस  की  बूंदे  गुलाब  पर

वो मुस्कुरा  के कहने  लगे  ना  लगे नज़र
हर  सूट  सूट  करता  है  मेरे नवाब  पर


कुछ इस तरह से इश्क़ का इज़हार चाहिए
लिक्खा हो मेरा नाम तुम्हारी किताब पर

पूछा था ये उन्होने क्या चाहिए तुम्हें
शर्मा गये थे फिर वो हमारे जवाब पर

साहिर करेंगे मिल के सभी तार्क़ मैकशी
खाई है रिंदो ने क़सम अब के शराब पर

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