हर एक उदासियों का है पैकर बना हुआ
फिर से कही वही है सितम्गर बना हुआ
कब तक नही सुनेगा तू दिल की मेरे सदा
कब तक रहेगा यूँही तू पत्थर बना हुआ
आवाज़े इश्क़ दिल मे ही दर्गोर कर दिया
लगता है कोई फिर से है अकबर बना हुआ
तखलीक़ करके जाने पत्थर के कितने बुत
बैठा हू सरे राह मे आज़र बना हुआ
कैसे करे हम इश्क़ नवाबी मिजाज़ है
रहता है इश्क़ हुस्न का नौकर बना हुआ
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