ऐसे ही लिखे हैं कुछ बोल तुम्हारी खातिर
गर इजाज़त हो तू दूँ बोल तुम्हारी खातिर
आप अनमोल हो मेरे लिए समझोगे नही
खुद को ले आए हैं बेमोल तुम्हारी खातिर
मुझको मालूम है पाउट नही जचती मुझ पर
फिर भी लब कर दिए हैं गोल तुम्हारी खातिर
पाँव फिर खुद ही थिरक उठठे तुम्हारे साहिर
हम बजा दें जो अगर ढोल तुम्हारी खातिर
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