Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Friday, 9 June 2017

अंधेरा रोक लेती है उजाला बाँध देती है


अंधेरा रोक लेती है उजाला बाँध देती है
वो ठंडक से बचाने को दुशाला बाँध देती है

किसी माँ की दुआ को तुम कभी हल्के मे मत लेना
समंदर रोकना हो तो हिमाला बाँध देती है

अमीरो की तरह लॉकर नही है बैंक मे उसके
ग़रीबी जब भी घबराती है ताला बाँध देती है

बेचारी मुहब्बत आँसुओ से रोज़ बुनती है
किसी हज़रत के दरवाज़े पे माला बाँध देती है

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