Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Friday, 9 June 2017

मुझे तुमसे मुहब्बत थी मुझे तुमसे मुहब्बत है

मुझे तुमसे मुहब्बत थी मुझे तुमसे मुहब्बत है



तेरा ही नाम लेने की
मेरी धरकन को आदत है
मेरे ख्वाबो की दुनिया में
तेरी ही तेरी सूरत है
खामोशी के लम्हो मे
ये कहने की ज़रूरत है
मुझे तुमसे मुहब्बत थी
मुझे तुमसे मुहब्बत है

तुम्हारे ही लिए सारी
दुआएँ हैं इबादत है
वफाएँ जो तुम्हारी हैं
वही पूंजी है दौलत है
कभी सावन के मौसम मे तेरे मिलने की चाहत है
मुझे तुमसे मुहब्बत थी
मुझे तुमसे मुहब्बत है

हैं ज़ूलफे जो घटा जैसी
और आँखो मे शरारत है
तेरी तस्वीर है ऐसी
मेरी बरसो की मेहनत है
कभी साहिर से भी मिल ले
अगर दो पल को मोहलत है
मुझे तुमसे मुहब्बत थी
मुझे तुमसे मुहब्बत है
©Sahir Adeeb

No comments:

Post a Comment