Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Friday, 9 June 2017

मुझे मुआफ़ करो मेरी इस खता के लिए


मुझे मुआफ़ करो मेरी इस खता के लिए
तड़प रहा हूँ तेरे दिल मे कुछ  जगह के लिए

गुनाह ऐसे की शैतान भी लरज उठठे
ये कोई बात है हाज़िर हूँ मैं सज़ा के लिए

बस आँख भीगी और अता रब ने कर दिया
अभी तो हाथ भी उठे न थे दुआ के लिए

मेरे गुनाहो की फेहरिस्त बड़ी लंबी है
मुझे मुआफ़ ना करना कभी खुदा क लिए

उसे ज़माना अभी पागल ही समझता है
वो इंतेज़ार मे है आज भी वफ़ा के लिए

तेरी निगाहो का साक़ी कोई जवाब तो दे
मैकदे खुद ही चले आए हैं नशा क लिए

मैं आज और अभी लौट आऊँगा "साहिर"
हूँ इंतेज़ार मे तेरी बस एक सदा क लिए
©Sahir Adeeb

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