कोई आवाज़ महक उठी थी जादू बन कर
मेरी साँसों में वही रहती है खुश्बू बन कर
टूटते दिल से लहू के थे जो क़तरे निकले
वो छलकते हैं मेरी आँखों मे आँसू बन कर
कोई शीरीनी सी कानो में घुली जाती है
बोलता है वो सरापा यूँही उर्दू बन कर
तुम में ये चीज़ नहीं ये भी ग़लत वो भी ग़लत
जाने क्यूँ मिलता है अक्सर वो तराज़ू बन कर
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