Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Sunday, 18 February 2018

मानो ना मानो हुसने ग़ज़ल हम प्यार तुम्ही से करते हैं



इस चेहरे पे कितने शायर

अपने नगमे कहते होंगे
इन नज़रो से ज़ख़्मी कितने 
पागल पागल रहते होंगे
देख के उसको इन आँखो मे
किया किया रंग उभरते हैं
मानो ना मानो हुसने ग़ज़ल हम
प्यार तुम्ही से करते हैं
ऐसा नहीं की प्यार  नहीं  है
इश्क़ मे दिल बीमार नहीं है
सच है के महबूब मेरा ये

सुनने को तैयार नहीं है
देख देख के उसको कब से

यूँही आहें भरते हैं
मानो ना मानो हुसने ग़ज़ल हम
प्यार तुम्ही से करते हैं
जिसको छूके झोंके हवा के
खुश्बू से भर जाते हैं
उनके जिस्म के हर हिस्से से
नूर से छन छन  आते हैं
कर के ही दीदार तेरा ये 

चाँद और तारे सँवरते हैं
मानो ना मानो हुसने ग़ज़ल हम
प्यार तुम्ही से करते हैं
जैसे बारिश की  ये बूंदे
आँगन मे रह रह बरसती हैं
तेरी याद मे जाने जानाँ
ऐसे आँखे छलक्ती हैं
देखो कब दिन आए मेरे

नज़र इधर कब करते हैं
मानो ना मानो हुसने ग़ज़ल हम
प्यार तुम्ही से करते हैं
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