Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Saturday, 17 February 2018

क्यूँ फिरते मारे मारे हो





क्यूँ फिरते मारे मारे हो
तुम थोड़े कोई बन्जारे हो

ये मान लिया कि चाँद हो तुम
पर मेरी आँख के तारे हो
ये सच है कि तुम जान नही 
पर जान से ज़्यादा प्यारे हो

तेरी आँख के आँसू कहते हैं 
तुम दिल की बाज़ी हारे हो
हम जानो दिल से तेरे हैं
क्या साहिर आप हमारे हो
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