Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Tuesday, 6 February 2018

हुस्न के माहताब की खातिर



हुस्न  के  माहताब  की खातिर
हाँ  उसी  लाजवाब  की खातिर
रात पलकों पे जो  चमकता था
उस अधूरे से ख्वाब की खातिर
आज  हम  एक  गुलाब लाए हैं
एक  रश्के   गुलाब  की खातिर
اردو میں پڑھیں

No comments:

Post a Comment