Sahir Adeeb

The Poet of New Generations

Friday, 16 February 2018

मेरे पहलू पे मेरे ख्वाबों को


मेरे पहलू पे मेरे ख्वाबों को
शीश महलों के उन सुराबों को
मेरे लफ़्ज़ों को मेरी ग़ज़लों को
मेरी चाहत की उन किताबों को
जिसने ठोकर लगाई पत्थर था
या कि जिसको लगाई पत्थर था

इश्क़ जब भी मुकरने लगता है
अश्क आँखो में भरने लगता है
टूटता जब भी उसका सपना है
क्या वो ऐसे बिखरने लगता है
थोड़ा बेहतर समझने वाला भी
खुद को पत्थर समझने वाला भी

अपना जादू वो आज़माते हैं
देख कर हम को मुस्कुराते हैं
वक़्त अपना गुज़ारने के लिए
ये हसीं यौंही दिल लगते हैं
फिर नक़ाबें उतार देते हैं
दिल पे ठोकर ये मार देते हैं
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