मेरे पहलू पे मेरे ख्वाबों को
शीश महलों के उन सुराबों को
मेरे लफ़्ज़ों को मेरी ग़ज़लों को
मेरी चाहत की उन किताबों को
जिसने ठोकर लगाई पत्थर था
या कि जिसको लगाई पत्थर था
इश्क़ जब भी मुकरने लगता है
अश्क आँखो में भरने लगता है
टूटता जब भी उसका सपना है
क्या वो ऐसे बिखरने लगता है
थोड़ा बेहतर समझने वाला भी
खुद को पत्थर समझने वाला भी
अपना जादू वो आज़माते हैं
देख कर हम को मुस्कुराते हैं
वक़्त अपना गुज़ारने के लिए
ये हसीं यौंही दिल लगते हैं
फिर नक़ाबें उतार देते हैं
दिल पे ठोकर ये मार देते हैं
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